महिला पुलिस अधिकारी भी हो सकती है घरेलू हिंसा की शिकार: दिल्ली हाईकोर्ट
दहेज उत्पीड़न से जुड़े मामले में एक महिला पुलिस अधिकारी के पति को क्रूरता के आरोपों से मुक्त करने के मामले पर दिल्ली हाईकोर्ट ने महत्वपूर्ण टिप्पणी करते हुए कहा कि किसी भी लिंग या पेशे की रूढ़िवादी धारणा से अदालत की राय को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। महिला चाहे उसकी स्थिति या पृष्ठभूमि कुछ भी हो समान सम्मान मान्यता और कानूनी सुरक्षा तक पहुंच की हकदार है।
जागरण संवाददाता, नई दिल्ली। दहेज उत्पीड़न से जुड़े मामले में एक महिला पुलिस अधिकारी के पति को क्रूरता के आरोपों से मुक्त करने के मामले पर दिल्ली हाई कोर्ट ने महत्वपूर्ण टिप्पणी करते हुए कहा कि किसी भी लिंग या पेशे की रूढ़िवादी धारणा से अदालत की राय को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है।
सत्र अदालत के निष्कर्ष आपराधिक न्यायशास्त्र और निष्पक्ष सुनवाई के सिद्धांतों पर न होकर इस एक अनुचित धारणा और पूर्वाग्रह पर आधारित थे कि एक पुलिस अधिकारी कभी भी घरेलू हिंसा का शिकार नहीं हो सकता।
न्यायमूर्ति स्वर्ण कांता शर्मा की पीठ ने कहा कि विशेष रूप से एक न्यायाधीश के रूप में यह धारणा रखना एक तरह का अन्याय है कि एक महिला, एक पुलिस अधिकारी के रूप में अपने पेशे के आधार पर संभवतः अपने व्यक्तिगत या वैवाहिक जीवन में पीड़ित नहीं हो सकती है।
अदालत ने कहा कि हर महिला, चाहे उसकी स्थिति या पृष्ठभूमि कुछ भी हो, समान सम्मान, मान्यता और कानूनी सुरक्षा तक पहुंच की हकदार है। यह विचार पुरुषों पर भी लागू होता है। अदालत ने उक्त टिप्पणी भारतीय दंड संहिता-1860 की धारा 498ए के अपराध के लिए एक पति और उसके परिवार के सदस्यों को आरोपमुक्त करने के निचली अदालत के आदेश को रद करते हुए की।
इसके साथ ही अदालत ने कहा कि लैंगिक समानता और सांस्कृतिक विविधता जैसे मुद्दों को दिल्ली न्यायिक अकादमी के पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाया जाना चाहिए। अदालत ने कहा कि छिपे हुए पूर्वाग्रह निष्पक्ष और न्यायसंगत निर्णयों के दुश्मन हैं। अदालत ने कहा कि इस तरह के प्रशिक्षण से विभिन्न दृष्टिकोणों और अनुभवों की गहरी समझ को भी बढ़ावा मिलेगा और न्यायाधीशों को अधिक न्यायसंगत निर्णय लेने में मदद मिलेगी। अदालत ने आदेश दिया कि इस फैसले की एक प्रति आवश्यक कार्रवाई और अनुपालन के लिए दिल्ली न्यायिक अकादमी के निदेशक (शिक्षाविद) को भेजी जाए।
याचिका के अनुसार पत्नी ने यह आरोप लगाते हुए मामला दर्ज कराया था कि उसकी शादी के तुरंत बाद पति और ससुराल वालों ने उसे अपर्याप्त दहेज लाने के लिए ताना देना और चिढ़ाना शुरू कर दिया। उससे अधिक दहेज लाने की भी मांग की। शादी के समय पति-पत्नी दोनों दिल्ली पुलिस में सब इंस्पेक्टर के पद पर कार्यरत थे। निचली अदालत के आदेश को रद करते हुए अदालत ने कहा कि सत्र न्यायालय ने मुख्य रूप से इस कारण से आरोपित व्यक्तियों को बरी कर दिया कि शिकायतकर्ता दिल्ली पुलिस में एक पुलिस अधिकारी के रूप में काम कर रही थी। इस प्रकार विचाराधीन अपराध उसके खिलाफ नहीं किया जा सकता था।